The Definitive Guide to sidh kunjika
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देवी माहात्म्यं दुर्गा सप्तशति तृतीयोऽध्यायः
देवी माहात्म्यं दुर्गा सप्तशति त्रयोदशोऽध्यायः
देवी माहात्म्यं दुर्गा सप्तशति दशमोऽध्यायः
हुं हु हुंकाररूपिण्यै जं जं जं जम्भनादिनी।
ज्वालय ज्वालय ज्वल ज्वल प्रज्वल प्रज्वल
चामुण्डा चण्डघाती च यैकारी वरदायिनी ।
देवी माहात्म्यं अपराध क्षमापणा स्तोत्रम्
दकारादि श्री दुर्गा सहस्र नाम स्तोत्रम्
देवी माहात्म्यं दुर्गा सप्तशति सप्तमोऽध्यायः
यस्तु कुंजिकया देविहीनां सप्तशतीं पठेत्।
जाग्रतं हि महादेवि जप ! सिद्धिं कुरूष्व मे।।
ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे ज्वल हं सं more info लं क्षं फट् स्वाहा ॥ ५ ॥
On chanting usually, Swamiji says, “The more we recite, the more we hear, and the greater we attune ourselves on the vibration of what's staying claimed, then the greater we will inculcate that Frame of mind. Our intention amplifies the Frame of mind.”
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